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आयुर्वेद
आयुर्वेद विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणालियों में से है। यह विज्ञान और कला का अद्भुत मिश्रण है। ‘आयुर्वेद’ का अर्थ है, ‘जीवन का ज्ञान’ - और यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है। प. श्री राम शर्मा आचार्य ने भी कहा है "जीवेम शरदः शतम" । इस चिकित्सा प्रणाली से मात्र रोग के उपचार ही नहीं अपितु रोगों की पूर्वत रोकथाम के उपायों बारे भी विस्तार है।
इस शास्त्र के आदि आचार्य अशिवनीकुमार माने जाते हैं जिन्होनें दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सर जोड़ा था । अत्रि और भरद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं । आयुर्वैद अथर्ववेद का उपांग माना जाता है । इसके आठ अंग हैं (१) शल्य (चीरफाड़), (२) शालाक्य (सलाई), (३) कायचिकित्सा (ज्वर, अतिसार आदि की चिकित्सा), (४) भूतविद्या (झाड़-फूँक), (५) कौमारभृत्य (बालचिकित्सा), (६) अगदतंत्र (बिच्छू, साँप आदि के काटने की दवा), (७) रसायन और (८) बाजीकरण । आयुर्वेद शरीर में बात, पित्त, कफ मानकर चलता है । इसी से उसका निदानखंड कुछ संकुचित सा हो गया है । आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनीकुमार, धन्वतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पराशर, सीरपाणि हारीत), सुश्रुत और चरक।
आयुर्वेद, चरक सहिंता, रावण सहिंता धन्वंतरी साहित्य जैसी बहुत सी पुस्तकों में अत्यधिक रोगों का इलाज भस्म, व्लेह, तेल, घृत, रिस्ट एवं आसव द्वारा वर्णित है। भारतीय चिकित्सा के अनुसार बिना किसी नए रोग की उत्पत्ति के साधारण तरीके से पूर्व रोग से निदान मालिश एवं उपरलिखित परिशिष्ट द्वारा संभव है। हाँ! भारतीय चिकित्सा द्वारा किसी भी रोग का निदान समय अवश्य ले सकता है लेकिन किसी भी प्रयोग में शरीर का कोई नुक्सान नहीं है।
इस शास्त्र के आदि आचार्य अशिवनीकुमार माने जाते हैं जिन्होनें दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सर जोड़ा था । अत्रि और भरद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं । आयुर्वैद अथर्ववेद का उपांग माना जाता है । इसके आठ अंग हैं (१) शल्य (चीरफाड़), (२) शालाक्य (सलाई), (३) कायचिकित्सा (ज्वर, अतिसार आदि की चिकित्सा), (४) भूतविद्या (झाड़-फूँक), (५) कौमारभृत्य (बालचिकित्सा), (६) अगदतंत्र (बिच्छू, साँप आदि के काटने की दवा), (७) रसायन और (८) बाजीकरण । आयुर्वेद शरीर में बात, पित्त, कफ मानकर चलता है । इसी से उसका निदानखंड कुछ संकुचित सा हो गया है । आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनीकुमार, धन्वतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पराशर, सीरपाणि हारीत), सुश्रुत और चरक।
आयुर्वेद, चरक सहिंता, रावण सहिंता धन्वंतरी साहित्य जैसी बहुत सी पुस्तकों में अत्यधिक रोगों का इलाज भस्म, व्लेह, तेल, घृत, रिस्ट एवं आसव द्वारा वर्णित है। भारतीय चिकित्सा के अनुसार बिना किसी नए रोग की उत्पत्ति के साधारण तरीके से पूर्व रोग से निदान मालिश एवं उपरलिखित परिशिष्ट द्वारा संभव है। हाँ! भारतीय चिकित्सा द्वारा किसी भी रोग का निदान समय अवश्य ले सकता है लेकिन किसी भी प्रयोग में शरीर का कोई नुक्सान नहीं है।