Akash Ganga Paying Guest (A/C) only for Girls, #1108, Sec 13, Kurukshetra-136118
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नागकेसर
नागचम्पा की कलि को नागकेसर कहते है| नागकेसर कडवी, कसेली, आमपाचक, किंचित गरम, रुखी, हलकी ,गरम, रुधिर रोग, वात, ह्रदय की पीड़ा, पसीना, दुर्गन्ध, विष, तृषा, कोढ़, कान्त रोग और मस्तक शूल का नाश करती है| भगवान शिव जी की पूजा में नागकेसर का उपयोग किया जाता है, तांत्रिक प्रयोगों और लक्ष्मी दायक प्रयोगों में भी नागकेसर का उपयोग किया जाता है
इसे नागेश्वर भी कहते हैं। देखने में यह कलि मिर्च के समान गोल और गेरू के समान रंगीन होती है। इसका फूल गुच्छेदार होता है। नागकेसर महादेव को बहुत प्रिय है। अभिमंत्रित नागकेसर वशीकरण के लिए बहुत उपयोगी होता है
१. नागकेसर, चमेली का फल, तगर, कुमकुम, कूट को एक साथ मिलाकर्र रवि, पुष्य योग या गुरु पुष्य योग के समय खरल में कूल लें, फिर कपद्छान कर गाय का दूध मिलाकर माथे पर तिलक लगाने से अति तीव्र वशीकरण होता है।
२. धन-संपदा प्राप्ति के लिए पूर्णिमा के दिन शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग को दूध, दही, शहद, मीठा, घी, गंगाजल से अभिषेक कर पञ्च विल्वपत्र के साथ नागकेसर के फूल शिवलिंग पर अर्पित करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक अविरोध करते रहे। अंतिम दिन अर्पित किये विल्वपत्र और पुष्प घर लाकर तिजोरी में रख दें। अप्रत्याशित रूप से धन की वृद्धि होगी।
३. चांदी के ढक्कन वाली छोटी डिब्बी में नागकेसर बंद कर अपने पास रखने से काल सर्प दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
४. कुंडली में चंद्रमा कमजोर होने पर नागकेसर से शिवजी की पूजा करनी चाहिए।
इसे नागेश्वर भी कहते हैं। देखने में यह कलि मिर्च के समान गोल और गेरू के समान रंगीन होती है। इसका फूल गुच्छेदार होता है। नागकेसर महादेव को बहुत प्रिय है। अभिमंत्रित नागकेसर वशीकरण के लिए बहुत उपयोगी होता है
१. नागकेसर, चमेली का फल, तगर, कुमकुम, कूट को एक साथ मिलाकर्र रवि, पुष्य योग या गुरु पुष्य योग के समय खरल में कूल लें, फिर कपद्छान कर गाय का दूध मिलाकर माथे पर तिलक लगाने से अति तीव्र वशीकरण होता है।
२. धन-संपदा प्राप्ति के लिए पूर्णिमा के दिन शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग को दूध, दही, शहद, मीठा, घी, गंगाजल से अभिषेक कर पञ्च विल्वपत्र के साथ नागकेसर के फूल शिवलिंग पर अर्पित करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक अविरोध करते रहे। अंतिम दिन अर्पित किये विल्वपत्र और पुष्प घर लाकर तिजोरी में रख दें। अप्रत्याशित रूप से धन की वृद्धि होगी।
३. चांदी के ढक्कन वाली छोटी डिब्बी में नागकेसर बंद कर अपने पास रखने से काल सर्प दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
४. कुंडली में चंद्रमा कमजोर होने पर नागकेसर से शिवजी की पूजा करनी चाहिए।
नागकेसर १संज्ञा स्त्री० [सं०नागकेशर या नागकेसर] एक सीधा सदाबहार पेड जो देखने में बहुत सुंदर होता है ।
विशेष— यह द्विदल अंगुर से उत्पन्न होता है । पत्तियाँ इसकी बहुत पतली और घनी होती हैं, जिससे इसके नीचे बहुत अच्छी छाया रहती है । इसमें चार दलों के बडे़ और सफेद फूल गरमियों में लगते हैं जिनमें बहुत अच्छी महक होती है । लकड़ी इसकी इतनी कडी और मजबूत होती है कि काटनेवाले की कुल्हाडियों की धारें मुड मुड जाती है; इसी से इसे वज्रकाठ भी कहत हैं । फलों में दो या तीन बीज निकलते हैं ।
हिमालय के पूरबी भाग, पूरबी बंगाल, आसाम, बरमा, दक्षिण भारत, सिहल आदि में इसके पेड बहुतायत से मिलते हैं । नागकेसर के सूखे फूल औषध, मसाले और रंग बनाने के काम में आते हैं । इनके रंग से प्रायः रेशम रँगा जाता है । सिंहल में बीजों से गाढा, पीला तेल निकालते हैं, जो दीया जलाने और दवा के काम में आता है । मदरास में इस तेल को वातरोग में भी मलते हैं । इसकी लकड़ी से अनेक प्रकार के सामान बनते हैं । लकड़ी ऐसी अच्छी होती है कि केवल हाथ से रँगने से ही उसमें वरानिश की सी चमक आ जाती है ।
बैद्यक में नागकेसर कसेली, गरम, रुखी, हलकी तथा ज्वर, खुजली, दुर्गंध, कोढ, विष, प्यास, मतली और पसीने को दूर करनेवाली मानी जाती है । खूनी बवासीर में भी वैद्य लोग इसे देते हैं । इसे नागचंपा भी कहते हैं ।
विशेष— यह द्विदल अंगुर से उत्पन्न होता है । पत्तियाँ इसकी बहुत पतली और घनी होती हैं, जिससे इसके नीचे बहुत अच्छी छाया रहती है । इसमें चार दलों के बडे़ और सफेद फूल गरमियों में लगते हैं जिनमें बहुत अच्छी महक होती है । लकड़ी इसकी इतनी कडी और मजबूत होती है कि काटनेवाले की कुल्हाडियों की धारें मुड मुड जाती है; इसी से इसे वज्रकाठ भी कहत हैं । फलों में दो या तीन बीज निकलते हैं ।
हिमालय के पूरबी भाग, पूरबी बंगाल, आसाम, बरमा, दक्षिण भारत, सिहल आदि में इसके पेड बहुतायत से मिलते हैं । नागकेसर के सूखे फूल औषध, मसाले और रंग बनाने के काम में आते हैं । इनके रंग से प्रायः रेशम रँगा जाता है । सिंहल में बीजों से गाढा, पीला तेल निकालते हैं, जो दीया जलाने और दवा के काम में आता है । मदरास में इस तेल को वातरोग में भी मलते हैं । इसकी लकड़ी से अनेक प्रकार के सामान बनते हैं । लकड़ी ऐसी अच्छी होती है कि केवल हाथ से रँगने से ही उसमें वरानिश की सी चमक आ जाती है ।
बैद्यक में नागकेसर कसेली, गरम, रुखी, हलकी तथा ज्वर, खुजली, दुर्गंध, कोढ, विष, प्यास, मतली और पसीने को दूर करनेवाली मानी जाती है । खूनी बवासीर में भी वैद्य लोग इसे देते हैं । इसे नागचंपा भी कहते हैं ।