Akash Ganga Paying Guest (A/C) only for Girls, #1108, Sec 13, Kurukshetra-136118
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पान
परिचय
भारत में पान खाने के लिए ही नहीं वरन पूजा, यज्ञ, हवन, सांस्कृतिक कार्यों, मेहमानों का स्वागत जैसे अनेक कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है। पान मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार पश्चिमी बंगाल में मुख्यतः पाया जाता है। लेकिन बनारसी, कलकत्ता और लखनऊ का पान सबसे अधिक प्रसिद्द है। इसके अतिरिक्त साँची, मद्रासी, कपूरी, महोग, मालवी, बंगला, विओला एवं देसी नामों से भी पान विक्रय किये जाते हैं। बनारसी पान भारत के सभी स्थानों पर सुलभ है।
गुण व् दोष
जहाँ तजा पान वात, पित्त, जलन उत्पन्न करता है, अरुचि बढाता है, खून के रोगों को पैदा करता है और उलटी लाता है वहीं पुराना पान भोजन में रूचि पैदा करता है। सुगन्धित, तीक्षण, मीठा, ह्रदय का हित करने वाला, वीर्यवर्धक, बलकारक, दस्तावर और मुहं को शुद्ध करने वाला होता है।
श्री वाटी पान - यह पित्त और कफनाशक है, भोजन में रूचि पैदा करता है और पचने में शीतल है।
अम्ल वाटी - यह चरपरा, खट्टा, तीक्षण, मुहं में जलन पैदा करने वाला और वायु दोष हरने वाला है।
सीतसी - यह मधुर, तीक्षण, गर्म, गैस नाशक, भोजन में रूचि पैदा करने वाला है।
मालवा का अंगार - यह दस्तावर अमली, तीक्षण, ठंडा, मीठा, ह्रदय हितैषी, गर्मिनाशक, बलवर्धक, सुगन्धित है। पेट के रोग दूर कर कब्ज तोडने में सहायक है।
पॉट कुली पान - आंध्रप्रदेश का यह पान कषैला, गर्म, तीखा, बलगम दूर करने वाला, पित्त, वात विनाशक है।
पकाया पान - यह शरीर के रंग को अच्छा करता है, तीनो विकार दूर करता है।
काला पान - यह कडुवा, गर्म, मुहं की जड़ता और मल दूर करने वाला है।
स्याह पान - काफ-वात नाशक, खाने योग्य, भोजन पचाने में सहायक है।
पान का फल - हृदयरोग विनाशक, सुगन्धित, काफ-वायु नाशक है।
कत्था - कत्था कफ-पित्त नाशक, चुना वात-कफ नाशक, सुपारी कफ-पित्त नाशक होती है। पान में कत्था, बुझा चुना और सुपारी मिलाकर खाने से वात, कफ, पित्त तीनो विकारों का नाश होता है। चित्त प्रसन्न होता है शरीर हल्का एवं सुगन्धित होता है।
सुबह पान में सुपारी की मात्रा अधिक व रात में चुना की मात्रा अधिक रखने से हितकर होता है। पान खाकर एक या दो बार अवश्य पीक निकालनी चाहिए उसके उपरांत पीक निगलने से उक्त फायदा होता है। जुलाब होने पर या भूखा होने पर भी पान का सेवन मिथ्या है। अधिक मात्रा में पान खाने से आँख, बाल, दांत, कान के एवं शुष्क रॊग होते हैं। रंग और बल में क्षीणता होती है, भूख का नाश होता है।
भारत में पान खाने के लिए ही नहीं वरन पूजा, यज्ञ, हवन, सांस्कृतिक कार्यों, मेहमानों का स्वागत जैसे अनेक कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है। पान मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार पश्चिमी बंगाल में मुख्यतः पाया जाता है। लेकिन बनारसी, कलकत्ता और लखनऊ का पान सबसे अधिक प्रसिद्द है। इसके अतिरिक्त साँची, मद्रासी, कपूरी, महोग, मालवी, बंगला, विओला एवं देसी नामों से भी पान विक्रय किये जाते हैं। बनारसी पान भारत के सभी स्थानों पर सुलभ है।
गुण व् दोष
जहाँ तजा पान वात, पित्त, जलन उत्पन्न करता है, अरुचि बढाता है, खून के रोगों को पैदा करता है और उलटी लाता है वहीं पुराना पान भोजन में रूचि पैदा करता है। सुगन्धित, तीक्षण, मीठा, ह्रदय का हित करने वाला, वीर्यवर्धक, बलकारक, दस्तावर और मुहं को शुद्ध करने वाला होता है।
श्री वाटी पान - यह पित्त और कफनाशक है, भोजन में रूचि पैदा करता है और पचने में शीतल है।
अम्ल वाटी - यह चरपरा, खट्टा, तीक्षण, मुहं में जलन पैदा करने वाला और वायु दोष हरने वाला है।
सीतसी - यह मधुर, तीक्षण, गर्म, गैस नाशक, भोजन में रूचि पैदा करने वाला है।
मालवा का अंगार - यह दस्तावर अमली, तीक्षण, ठंडा, मीठा, ह्रदय हितैषी, गर्मिनाशक, बलवर्धक, सुगन्धित है। पेट के रोग दूर कर कब्ज तोडने में सहायक है।
पॉट कुली पान - आंध्रप्रदेश का यह पान कषैला, गर्म, तीखा, बलगम दूर करने वाला, पित्त, वात विनाशक है।
पकाया पान - यह शरीर के रंग को अच्छा करता है, तीनो विकार दूर करता है।
काला पान - यह कडुवा, गर्म, मुहं की जड़ता और मल दूर करने वाला है।
स्याह पान - काफ-वात नाशक, खाने योग्य, भोजन पचाने में सहायक है।
पान का फल - हृदयरोग विनाशक, सुगन्धित, काफ-वायु नाशक है।
कत्था - कत्था कफ-पित्त नाशक, चुना वात-कफ नाशक, सुपारी कफ-पित्त नाशक होती है। पान में कत्था, बुझा चुना और सुपारी मिलाकर खाने से वात, कफ, पित्त तीनो विकारों का नाश होता है। चित्त प्रसन्न होता है शरीर हल्का एवं सुगन्धित होता है।
सुबह पान में सुपारी की मात्रा अधिक व रात में चुना की मात्रा अधिक रखने से हितकर होता है। पान खाकर एक या दो बार अवश्य पीक निकालनी चाहिए उसके उपरांत पीक निगलने से उक्त फायदा होता है। जुलाब होने पर या भूखा होने पर भी पान का सेवन मिथ्या है। अधिक मात्रा में पान खाने से आँख, बाल, दांत, कान के एवं शुष्क रॊग होते हैं। रंग और बल में क्षीणता होती है, भूख का नाश होता है।