शिलाजीत
आयुर्वेद जगत में शिलाजीत प्राचीन काल से ही स्वास्थ्यरक्षक एवं व्याधिहर के रुप में जाना जाता है। महर्षि चरक ने कहा कि पृथ्वी पर कोई भी ऐसा रोग नहीं है, जो उचित समय पर, उचित योगों के साथ, विधिपूर्वक शिलाजीत के उपयोग से नष्ट न हो सके। स्वस्थ मनुष्य यदि शिलाजीत का विधिपूर्वक उपयोग करता है, तो उत्तम बल मिलता है। वस्तुतः यह रसायन भी है।
आयुर्वेद के अनुसार शिलाजीत की उत्पति शिला, अर्थात पत्थर से मानी गयी है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों के ताप से पर्वत की चट्टानों के धातु अंश पिघलने से जो एक प्रकार का स्राव होता है, उसे शिलाजतु कहा जाता है। इसी को ही शिलाजीत कहा गया है।
शिलाजीत के गुण-धर्मः शिलाजीत कड़वा, कसैला, उष्ण, वीर्य शोषण तथा छेदन करने वाला होता है। शिलाजीत देखने में तारकोल के समान काला और गाढ़ा पदार्थ होता है जो सूखने पर चमकीला हो जाता है। यह जल में घुलनशील है, किंतु एल्कोहोल क्लोरोफॉर्म तथा ईथर में नहीं घुलता।
शिलाजीत के उपयोग से लाभः
शिलाजीत बलकारक, पांडु रोग, शोथ, श्वास, प्लीहा वृद्धि ज्वर में लाभकारी है।
इसके सेवन से रक्त भार कम होता है। यह, रक्त भार के कारण फैली हुई धमनियों को संकुचित कर, उसे बल प्रदान करता है।
मधुमेह के रोगी द्वारा आहार पर ध्यान रखकर शिलाजीत का सेवन करने से मधुमेह ठीक हो जाता है।
इसके सेवन से मूत्र में आता हुआ एलब्यूमिन दूर हो जाता है।
मूत्र कृच्छ में इसका उपयोग अति लाभदायक है।
रोगी को शिलाजीत का सेवन कराने से उनको अधिक मात्रा में मूत्र आने लगता है, जिससे उसके रोग का शमन होता है।
सेवन विधिः शिलाजीत का उपयोग, रोग और रोगी के बल के अनुसार, क्रमशः मात्रा बढ़ाते हुए, करना चाहिए। शिलाजीत का उपयोग करते समय आहार में दूध की ही प्रधानता रहनी चाहिए। इसे दूध, रस, जल तथा अनेक प्रकार के तरल पदार्थों में धोकर, रोगी एवं रोगों का विचार कर, उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार शिलाजीत का यत्नपूर्वक उपयोग करते हुए उत्तम सुख, निरोगी काया का सिद्धांत कायम कर सकते हैं। इस तरह कई रोगों में गुणकारी है शिलाजीत।
आयुर्वेद के अनुसार शिलाजीत की उत्पति शिला, अर्थात पत्थर से मानी गयी है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों के ताप से पर्वत की चट्टानों के धातु अंश पिघलने से जो एक प्रकार का स्राव होता है, उसे शिलाजतु कहा जाता है। इसी को ही शिलाजीत कहा गया है।
शिलाजीत के गुण-धर्मः शिलाजीत कड़वा, कसैला, उष्ण, वीर्य शोषण तथा छेदन करने वाला होता है। शिलाजीत देखने में तारकोल के समान काला और गाढ़ा पदार्थ होता है जो सूखने पर चमकीला हो जाता है। यह जल में घुलनशील है, किंतु एल्कोहोल क्लोरोफॉर्म तथा ईथर में नहीं घुलता।
शिलाजीत के उपयोग से लाभः
शिलाजीत बलकारक, पांडु रोग, शोथ, श्वास, प्लीहा वृद्धि ज्वर में लाभकारी है।
इसके सेवन से रक्त भार कम होता है। यह, रक्त भार के कारण फैली हुई धमनियों को संकुचित कर, उसे बल प्रदान करता है।
मधुमेह के रोगी द्वारा आहार पर ध्यान रखकर शिलाजीत का सेवन करने से मधुमेह ठीक हो जाता है।
इसके सेवन से मूत्र में आता हुआ एलब्यूमिन दूर हो जाता है।
मूत्र कृच्छ में इसका उपयोग अति लाभदायक है।
रोगी को शिलाजीत का सेवन कराने से उनको अधिक मात्रा में मूत्र आने लगता है, जिससे उसके रोग का शमन होता है।
सेवन विधिः शिलाजीत का उपयोग, रोग और रोगी के बल के अनुसार, क्रमशः मात्रा बढ़ाते हुए, करना चाहिए। शिलाजीत का उपयोग करते समय आहार में दूध की ही प्रधानता रहनी चाहिए। इसे दूध, रस, जल तथा अनेक प्रकार के तरल पदार्थों में धोकर, रोगी एवं रोगों का विचार कर, उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार शिलाजीत का यत्नपूर्वक उपयोग करते हुए उत्तम सुख, निरोगी काया का सिद्धांत कायम कर सकते हैं। इस तरह कई रोगों में गुणकारी है शिलाजीत।