Akash Ganga Paying Guest (A/C) only for Girls, #1108, Sec 13, Kurukshetra-136118
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कुटकी
सं - कटुका , हिं - कुटकी , बं - कटुकी , म- कुटकी , काली कुटकी , गु - कडु , अं - ब्लेक हल्लोबो |
विवरण - कुटकी को गरम दूध से धोकर औषधि के काम में लावे यह कुटकी बड़वाली गुल्म है |
झाझरा छोटा, पत्ते अण्डे के समान अकार वाले जिनके नीचे का भाग बड़ा और बगल खंडित होती है , फूल नीला और गुच्छों वाला होता है|
हिमालय के निकट पर्वतों क ए जँगल में यह उत्पन्न होती है| कुटकी पीत और कृष्ण भेद से दो प्रकार की होती है| इसमें पीले रँग की कुटकी नेत्र रोग को दूर करती है| इसकी मात्रा 6 रत्ती से लेकर 1 माशा तक है|
विवरण - कुटकी को गरम दूध से धोकर औषधि के काम में लावे यह कुटकी बड़वाली गुल्म है |
झाझरा छोटा, पत्ते अण्डे के समान अकार वाले जिनके नीचे का भाग बड़ा और बगल खंडित होती है , फूल नीला और गुच्छों वाला होता है|
हिमालय के निकट पर्वतों क ए जँगल में यह उत्पन्न होती है| कुटकी पीत और कृष्ण भेद से दो प्रकार की होती है| इसमें पीले रँग की कुटकी नेत्र रोग को दूर करती है| इसकी मात्रा 6 रत्ती से लेकर 1 माशा तक है|
वैज्ञानिक नाम - पिकरोराइजाकुरोआ
कुल - स्क्रोफुलेरिएसी
अन्य नाम - कटुकी, कडवी, केदार, कड़वी।
प्राप्ति स्थान- जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम तथा अरूणाचल प्रदेश की पहाडियों में पाया जाता है।
पादप विवरण- इसका पौधा छोटा तथा रोयेंदार बहुवर्षीय शाक होता है। पुष्प एक सीधे स्पाइक पर लगे होते है जोकि सफेद या नीले बैंगनी रंग के होते है तथा जडों का रंग हल्के भूरे रंग का होता है।
मुख्य रासायनिक संघटक एवं उपयोग- इसकी जड़ तथ प्रकन्द को सुखा कर दवा के रुप में प्रयोग किया जाता है। इसका कड़वापन ग्लूकोसाइड रसायन पिक्रोटीन 1 एवं 2 के कारण होता है। यह कुष्ठ रोग, पेट दर्द, हैजा, विषम ज्वर एवं रक्तविकार की औषधि के रुप में प्रयोग की जाती है। अधिक दोहन के कारण यह विलुप्तप्रायः है।
जलवायुउच्च हिमालय क्षेत्र 2100 मीटर से ऊपर एवं नम स्थान
खेत की तैयारी एवं बुबाई
प्रवर्धन- फसल बीज अथवा लगे हुये पौधों के प्रकन्दों द्वारा की जाती है। बीज सितम्बर व अक्टूबर माह में 1 x 1 मी. की समतल क्यारी में 10 सेमी. की दूरी पर लाइन बना कर डालें।
खेत की तैयारी- खेत की 2 जुताई कर उसे समतलित कर लेना चाहिये तथा सन्तुलित खाद मिला कर तैयार रखना चाहिये।
बोआई/रोपण विधि- बीज द्वारा तैयार पोध को 30 x 30 सेमी. की दूरी में मार्च-अप्रैल तथा अधिक ऊंचाई वाले स्थान पर मई-जून में रोपित करना चाहिये। यदि रोपण जड़ों या भूस्तारी तने द्वारा करना हो तो 4-6 सेमी. के टुकड़े को 12 घंटे जल में भिगा कर रोपण करें।
आर्गनिक खादबोआई से पूर्व 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद में १० किलो माइक्रो भू पावर एवं जैव कवकनाशी मिला लें। जैविक खाद एवं कवकनाशी का प्रयोग वर्ष में तीन बार देना चाहिये।
रोग
कुटकी की फसल पर किसी प्रकार के रोग का प्रभाव नहीं पड़ता है।
कीट प्रबंधन
कीट
कुटकी की फसल पर किसी प्रकार के कीट प्रभाव नहीं पड़ता है।
सिंचाई प्रबंधन
सिंचाई
सिंचाई प्रत्येक माह देनी चाहिये।
फसल कटाईफसल कटाई प्रथम बार दो वर्ष बाद तथा बाद में प्रत्येग वर्ष की जाती है। मई-जून अथवा अक्टूबर-नवम्बर माह में जब मौसम शुष्क हो तो खेत की खुदाई कर भूस्तारी प्रकन्द एवं जड़ें प्राप्त की जाती हैं।
उपज- 3 क्विंटल प्रति एकड़ सूखी जड़ें एवं प्रकन्द।
भंडारण
जड़ों को अच्छी प्रकार सुखाकर तथा ग्रेडिंग करके बोरों में नमी रहित स्थान पर रखते हैं।
कुल - स्क्रोफुलेरिएसी
अन्य नाम - कटुकी, कडवी, केदार, कड़वी।
प्राप्ति स्थान- जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम तथा अरूणाचल प्रदेश की पहाडियों में पाया जाता है।
पादप विवरण- इसका पौधा छोटा तथा रोयेंदार बहुवर्षीय शाक होता है। पुष्प एक सीधे स्पाइक पर लगे होते है जोकि सफेद या नीले बैंगनी रंग के होते है तथा जडों का रंग हल्के भूरे रंग का होता है।
मुख्य रासायनिक संघटक एवं उपयोग- इसकी जड़ तथ प्रकन्द को सुखा कर दवा के रुप में प्रयोग किया जाता है। इसका कड़वापन ग्लूकोसाइड रसायन पिक्रोटीन 1 एवं 2 के कारण होता है। यह कुष्ठ रोग, पेट दर्द, हैजा, विषम ज्वर एवं रक्तविकार की औषधि के रुप में प्रयोग की जाती है। अधिक दोहन के कारण यह विलुप्तप्रायः है।
जलवायुउच्च हिमालय क्षेत्र 2100 मीटर से ऊपर एवं नम स्थान
खेत की तैयारी एवं बुबाई
प्रवर्धन- फसल बीज अथवा लगे हुये पौधों के प्रकन्दों द्वारा की जाती है। बीज सितम्बर व अक्टूबर माह में 1 x 1 मी. की समतल क्यारी में 10 सेमी. की दूरी पर लाइन बना कर डालें।
खेत की तैयारी- खेत की 2 जुताई कर उसे समतलित कर लेना चाहिये तथा सन्तुलित खाद मिला कर तैयार रखना चाहिये।
बोआई/रोपण विधि- बीज द्वारा तैयार पोध को 30 x 30 सेमी. की दूरी में मार्च-अप्रैल तथा अधिक ऊंचाई वाले स्थान पर मई-जून में रोपित करना चाहिये। यदि रोपण जड़ों या भूस्तारी तने द्वारा करना हो तो 4-6 सेमी. के टुकड़े को 12 घंटे जल में भिगा कर रोपण करें।
आर्गनिक खादबोआई से पूर्व 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद में १० किलो माइक्रो भू पावर एवं जैव कवकनाशी मिला लें। जैविक खाद एवं कवकनाशी का प्रयोग वर्ष में तीन बार देना चाहिये।
रोग
कुटकी की फसल पर किसी प्रकार के रोग का प्रभाव नहीं पड़ता है।
कीट प्रबंधन
कीट
कुटकी की फसल पर किसी प्रकार के कीट प्रभाव नहीं पड़ता है।
सिंचाई प्रबंधन
सिंचाई
सिंचाई प्रत्येक माह देनी चाहिये।
फसल कटाईफसल कटाई प्रथम बार दो वर्ष बाद तथा बाद में प्रत्येग वर्ष की जाती है। मई-जून अथवा अक्टूबर-नवम्बर माह में जब मौसम शुष्क हो तो खेत की खुदाई कर भूस्तारी प्रकन्द एवं जड़ें प्राप्त की जाती हैं।
उपज- 3 क्विंटल प्रति एकड़ सूखी जड़ें एवं प्रकन्द।
भंडारण
जड़ों को अच्छी प्रकार सुखाकर तथा ग्रेडिंग करके बोरों में नमी रहित स्थान पर रखते हैं।