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अतीस
विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत-विषा, अतिविषा, हिंदी- अतीस। मराठी- अतिविष। गुजराती- अति बखनी कली। बंगला- आतइच। तेलगू- अतिबसा। कन्नड़- अति विषा। तामिल- अति विषम। पंजाबी- अतीस। फारसी- बज्जे तुर्की। इंग्लिश- इंडियन अतीस। लैटिन- एकोनाइटम हेटरोफाइलम।
गुण : अतीस उष्णवीर्य, कटु तथा तिक्त रसयुक्त, पाचक, अग्निदीपक है तथा कफ, पित्त, अतिसार, आम, विष, खांसी, वमन और कृमि, इन सब व्याधियों को दूर करने वाली है।
परिचय : यह 2-3 फीट ऊंचा पौधा होता है और पश्चिमोत्तर हिमालय में कुमाऊं, सिक्किम तथा चम्बा के क्षेत्र में 6 से 15 हजार फीट ऊंची चोटियों पर पाया जाता है। यह जड़ी-बूटी बेचने वाली दुकानों पर उपलब्ध रहती है। यह बहुत कड़वी होती है।
रासायनिक संघटन : इसमें अतीसिन नामक बिना रवेदार क्षाराभ होता है, जो बहुत कड़वा होता है पर विषैला नहीं होता। इसके अतिरिक्त इसमें दो रवेदार क्षाराभ हेटरेतीसिन और हेतिसिन तथा प्रचुर मात्रा में स्टार्च पाया जाता है।
उपयोग : यह जड़ी त्रिदोष शामक है। अत्यंत कड़वा होने के कारण कफ और पित्त का तथा उष्ण होने से वात का शमन करने वाली होती है। इन तीनों गुणों के कारण यह दीपन, पाचन, ग्राही, अर्शनाशक, कृमिनाशक, आम पाचन, रक्त शोधन तथा शोथ हर के कार्य करने वाली होती है, अतः इन व्याधियों को दूर करने वाली औषधि बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
अतीस बालकों के कई रोगों में बहुत उपयोगी व लाभप्रद सिद्ध होती है अतः इसे 'शिशु भैषज्य' कहा जाता है। बच्चों के लिए जितनी भी घुटियाँ बाजार में मिलती हैं, उन सबमें अतीस जरूर होती है। यह एक निरापद जड़ी है, अतः इसका सेवन निर्भीक होकर किया जा सकता है। औषधि के रूप में इसके घरेलू उपयोग का विवरण प्रस्तुत है।
मात्रा : इसकी मात्रा 1 या 2 रत्ती की है। इसे सुबह-शाम शहद में मिलाकर या दूध के साथ लेना चाहिए। इसका फाण्ट भी बनाया जाता है। आमातिसार होने पर इसका फाण्ट 2-2 चम्मच दिन में तीन बार लेना चाहिए।
गुण : अतीस उष्णवीर्य, कटु तथा तिक्त रसयुक्त, पाचक, अग्निदीपक है तथा कफ, पित्त, अतिसार, आम, विष, खांसी, वमन और कृमि, इन सब व्याधियों को दूर करने वाली है।
परिचय : यह 2-3 फीट ऊंचा पौधा होता है और पश्चिमोत्तर हिमालय में कुमाऊं, सिक्किम तथा चम्बा के क्षेत्र में 6 से 15 हजार फीट ऊंची चोटियों पर पाया जाता है। यह जड़ी-बूटी बेचने वाली दुकानों पर उपलब्ध रहती है। यह बहुत कड़वी होती है।
रासायनिक संघटन : इसमें अतीसिन नामक बिना रवेदार क्षाराभ होता है, जो बहुत कड़वा होता है पर विषैला नहीं होता। इसके अतिरिक्त इसमें दो रवेदार क्षाराभ हेटरेतीसिन और हेतिसिन तथा प्रचुर मात्रा में स्टार्च पाया जाता है।
उपयोग : यह जड़ी त्रिदोष शामक है। अत्यंत कड़वा होने के कारण कफ और पित्त का तथा उष्ण होने से वात का शमन करने वाली होती है। इन तीनों गुणों के कारण यह दीपन, पाचन, ग्राही, अर्शनाशक, कृमिनाशक, आम पाचन, रक्त शोधन तथा शोथ हर के कार्य करने वाली होती है, अतः इन व्याधियों को दूर करने वाली औषधि बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
अतीस बालकों के कई रोगों में बहुत उपयोगी व लाभप्रद सिद्ध होती है अतः इसे 'शिशु भैषज्य' कहा जाता है। बच्चों के लिए जितनी भी घुटियाँ बाजार में मिलती हैं, उन सबमें अतीस जरूर होती है। यह एक निरापद जड़ी है, अतः इसका सेवन निर्भीक होकर किया जा सकता है। औषधि के रूप में इसके घरेलू उपयोग का विवरण प्रस्तुत है।
मात्रा : इसकी मात्रा 1 या 2 रत्ती की है। इसे सुबह-शाम शहद में मिलाकर या दूध के साथ लेना चाहिए। इसका फाण्ट भी बनाया जाता है। आमातिसार होने पर इसका फाण्ट 2-2 चम्मच दिन में तीन बार लेना चाहिए।
सं - अतिविषा ,हिं - अतिस ,बं- आतईच , म- अतिविष ,गु- अतलसनी कली |
विवरण - गरम ,चरपरा ,कड़ुवा, पाचन , जठराग्नि को दीपन करने वाला तथा कफ , अतिसार ,आम ,विष ,खाँसी , ,वमि और कृमि रोग को दूर करने वाला होता है |
तीनों प्रकार अतिस त्रीदोष नाशक , पाचन मलरोधक ,कड़ुवा , बालकों को सर्व काल में पथ्य है और वमन और सूजन को दूर करता है |
अतिस - अतिसार , संग्रहणी को दूर करता है | अतिस - मलेरिया ज्वर का उत्तम औषधि है | अतिस , मुलेठी , मिश्री का चूर्ण शहद के साथ देने से बालकों की खाँसी दूर होती है| अतिस का चूर्ण आधि रत्ती शह्द के साथ देने से बालकों के पेट के कीड़े गिर पड़ते हैं | अतिस का चूर्ण बालकों के यकृत, प्लीहा, और पुराने ज्वर को बहुत जल्दी दूर करता है| तथा इससे बालकों का सुखण्डी रोग भी दूर होता है| अतिस कफ की वृद्धी की खास दवा है| अतिस के चूर्ण से सूजन दूर होती है| अतिस, काकड़ासींगी, नागरमोथा, और छोटी पीपर के चूर्ण से बालकों के श्वास, कास, ज्वर, वमन आदि रोग बहुत जल्दी अच्छे हो जाते हैं|
विवरण - गरम ,चरपरा ,कड़ुवा, पाचन , जठराग्नि को दीपन करने वाला तथा कफ , अतिसार ,आम ,विष ,खाँसी , ,वमि और कृमि रोग को दूर करने वाला होता है |
तीनों प्रकार अतिस त्रीदोष नाशक , पाचन मलरोधक ,कड़ुवा , बालकों को सर्व काल में पथ्य है और वमन और सूजन को दूर करता है |
अतिस - अतिसार , संग्रहणी को दूर करता है | अतिस - मलेरिया ज्वर का उत्तम औषधि है | अतिस , मुलेठी , मिश्री का चूर्ण शहद के साथ देने से बालकों की खाँसी दूर होती है| अतिस का चूर्ण आधि रत्ती शह्द के साथ देने से बालकों के पेट के कीड़े गिर पड़ते हैं | अतिस का चूर्ण बालकों के यकृत, प्लीहा, और पुराने ज्वर को बहुत जल्दी दूर करता है| तथा इससे बालकों का सुखण्डी रोग भी दूर होता है| अतिस कफ की वृद्धी की खास दवा है| अतिस के चूर्ण से सूजन दूर होती है| अतिस, काकड़ासींगी, नागरमोथा, और छोटी पीपर के चूर्ण से बालकों के श्वास, कास, ज्वर, वमन आदि रोग बहुत जल्दी अच्छे हो जाते हैं|